एक नई कहानी है
जो ज़ेहन क्के एक कोने में
अंगड़ाइयां ले रही है
छुप छुप के आंखों के आगे आती है
कुछ चेहरे उभरते हैं
मैं ज़ोर देकर कुछ समझने की कोशिश करता हूं
तो घुल जाते हैं
मेरी तन्हाइयों में
अजीब वक़्त है
अभी कल ही एक नया किस्सा हुआ
बहन ने दोस्त के हाथ
मां के हाथ का बना
आम का अचार भेजा
मुझे लगा जैसे मेरी मां फिर जिंदा हो चुकी है
कभी किसी औरत में
तो किसी दोस्त में
उसका रूप स्वरूप देखता रहता हूं
शायद इसी तरह से ध्यान रखती है
अब वो मेरा
अभी तक अचार चखना बाकी है वैसे
पर मां के हाथ का है तो
बेहतरीन ही होगा
शक की कोई गुंजाइश ही नहीं
वाह रे वक़्त
कैसी अठखेलियां सी करता है
पल में तोला
पल में माशा
कभी अपार सुख
कभी अपार दुख
पांच दिवसीय टेस्ट मैच चल रहा है
शांति का मेरी
वो भी दीठ हो चुकी है
खेल रही है
दिन बा दिन
वक़्त बेवक्त
निडर बेखौफ
अजीब वक़्त है।।