क़यामत

ज़हन कुरेदता है

कभी कभी

यूं जो

यादों के तेहखानों में

कैद चिट्ठियां रखी हैं कहीं

बरसों हुए उन्हें धूप लगे

नजरबंद हैं जाने कबसे

बेजान एक चारदीवारियों के बीच

जहां धूप निकली है

ना सुबह ही होती है

होती है तो बस एक आहट

जो आने वाले की यादें

ऐसे बिखेर देती है चौखट पर

कि उम्मीद अगर पूरी ना हो

तो मन रूस जाता है

वो ज़हन की चौखटें

बेसब्र हैं आज

क्यूं की

दीदार में बस

चंद लम्हों का फांसला है

उसके बाद क़यामत आ भी जाए

तो कोई गम नहीं।

कोई गम नहीं।।

कितना इश्क़

तुमने हमसे जो आज पूछा है
कि कितना इश्क़ है तुमसे
क्या बताएं तुम्हें हमनवां
सुबह की भीनी भीनी सी आहट में
तुम्हारे गीले केसुओ की खुशबू ढूंढते
मेरे नैन दिन भर तरसते हैं

तुम पूछती हो की बताओ
कितना प्यार है
क्या बताएं तुम्हें
कि रोज चौकट पे होती खटकट
और मन में मची हलचल
में तुम ही तुम हो

कभी कभी अविरल सा हो उठता है मन
सोचता हूं दबोच लूं
तेरे अक्स को
फोन से निकाल कर
बस बस नहीं चलता वक़्त पर

और तुम पूछती हो की
बताओ कितना इश्क़ है

इश्क़ तो इश्क़ है ज़ालिम
इश्क़ तो इश्क़ है
जब आजमाना हो
तो बता दीजियेगा
दरिया तो ना कूदेंगे
पर ज़िन्दगी भर
साथ निभाने का वादा है
चाहे तो आजमा लेना।
जब कभी ज़रुरत आन पड़े।।

राख

एक हवा चल पड़ी है

तीव्र है, आवेग में

भूचाल मचाती फिरती है

डट खड़ी है सामने

भूले बिसरे ज़ख्मों को

यूं नोचकर कुरेदती है

ज़हरीली हवा है ये

नमकीन हवा है ये

नासूर बन उभरती है

मिट्टी भरे खतों को ये

पानी में भिगो देती है

ठहर जाता है वक़्त जानें क्यों

जब वो ज़ख्म हरा कर देती है

बचपन की चीखें भी अब

बेबस सुनाई पड़ती हैं

लाचारी कराह कराह कर

बस कल की दुहाई देती है

कि वक़्त बदलेगा मेरा

और में वापस लौट के ना आऊंगा

पर वक़्त बदल चुका है पर

मैं वापस आया हूं फिर एक दफेह

ढूंढता हूं मैं

कल के किस्से बातें

क्यों चीख निकली

क्यों बात बढ़ी

क्यों हाथ उठा

क्या बात हुई

ज़हन में ताज़ा फिर से

कल की एक एक बात हुई

ढूंढ रहा था मैं

कुछ प्यार की बातें

हाथ में मेरे बस

एक राख लगी

ढूंढ रहा था

जो बचपन मेरा

हाथ में उसकी

बस राख लगी।।

ख़ुशबू

जानें कबसे मैं

कुछ बेचैन सा हूं

कशमकश है कोई

जबसे तुम मिली हो

जानें क्यों मैं

हर आइने में

तुम्हारा अक्स ढूंढता हूं

तपती दुपहरी की

झुलसती धूप में

तेरे होठों पर पड़ी

ओस की बूंदों का

ख्वाब देखता हूं मैं

हर वक़्त, हर लम्हा

बस तुझे सूझता हूं मैं

आज कल कुछ ज़्यादा

तुझे पूछता हूं मैं

सर्द रातों की

बर्फीली ठिठुरन होती है जब

तेरी बाहों की गर्माहट

दर बदर खोजता हूं मैं

रात होती है तो

चांद दिखता नहीं मुझे

क्योंकि चांद तो बस

तुम्हे देखता हूं मैं

बहुत याद आती हो तुम

तन्हाइयों में मेरी

सताती हो जाने क्यों

जबकि हर तलक

दीदार तेरा मन में मेरे

करता हूं मैं

सोचता हूं कि

“ठहरा

दिया जाए वक़्त को ही

तेरा अक्स कैद रहे

मेरी आखों में

मेरी बातों में

मेरी यादों में

मेरे कमरे के शीशे में

और मैं बस

ज़िन्दगी भर के लिए

तुझे यूं ही देखता रहूं”

ना जाने इस जैसे

कितने अनगिनत ख्वाब

रोज़ देखता हूं मैं

तू नहीं है पास

फिर भी

तेरी मौजूदगी

हर लम्हा महसूस करता हूं मैं

हर वक़्त हर लम्हा

बस तुझे

यूं सोचता हूं मैं।

Subdued

The Polls

The Humanity

The Bias

The Frugality

The Saviours

The Butcher

The Coercer

The Leader

And all that’s expected of me

Is to choose one

Out of all the devils

To rule me

Till eternity..

The Reason

I’ve been known

to carry

tremors in inside

Ones that cause mayhem

When I speak

As the truth prevails

and the egos deflate

The passions go for a toss

I carry thunderstorms

Capable of ruining relationships

Of lies told and untold

Of promises broken and destroyed

and humility taken advantage of

Of manipulation I went through

I carry a weight

Upon my back

Of the promises I can no longer keep

but can’t brush aside

Of truths, I shouldn’t say

Lest bonds would break

And relationships would tumble

and I can’t let it go..

And I am anxious

Every other day

Is there a way

To get out of the dilemma

To speak or not to speak

The ills and the evils

The good and the bad

The misses and the bullseyes

The mistresses and the wives

And of two timed lives

A fire rages within

One, which only

I can douse

And I am yet to discover,

Should I?

Or,

Why should I?

मिलन

कुछ नज्में हैं

जो दिल की धड़कनों में

जाने क्या कुछ फुसफुसा रही हैं

धड़कनें कुलबुला उठी हैं

बेचैन होकर

तुम्हारा ज़िक्र कर गुजरती हैं

पूछती हैं मुझसे

कि अब कब मिलोगे

हम भी सोच में डूब जाते हैं

पिछला हफ्ता याद आ जाता है

तुम्हारी घुंघराली जुल्फें

तुम्हारी आंखों तक बार बार सरक रही हैं

और तुम हर बार उन्हें करीने से

कानों के पीछे दबा देती हो

पर कमबख्त वक़्त है कि

परेशान करने से नहीं चूकता

अब तुम हाथ में बंधा हैरबैंड

बालों को कसकर सर पे रखती हो और

बांध देती हो

तुम्हारे सर पे एक छोटा कद्दू उग आया है

मेरी हसीं छूट जाती है

तुम गुस्से से देखती हो

सोचती हो इससे भला तो ना ही होते

ये घने लबे घुंघराले बाल

पर मैं मनाया हूं तुम्हें

तुम हंस पड़ती हो

बात कहीं और रुख कर लेती है

मैं हंस रहा हूं

तुम्हें याद करके

शायद तुम फिर मिलो।

शायद तुम फिर मिलो।।

नाम

कुछ रंग बदल

कुछ चाल बदल

कुछ ठुमक ठुमक कर

चल दौड़ चलें

कुछ शक्ल बदल

कुछ ख्वाब बदल

कर कुछ जीवन में फेरबदल

कर कुछ ऐसा काम नया

कुछ धुआं उठा

कुछ आग लगा

या सागर में छलांग लगा

सीरत अपने कल की तू खुद बदल

देख आज भी तेरे संग दौड़ चला

कुछ उन्माद दिखा

कुछ प्यास बढ़ा

तोड़ पुरानी ज़ंजीरों को

पग पग ज़मीन

तू नाप चल आ

तू दौड़ पड़

उठ छलांग मार

कुलांचे भर

हवा में उड़

गिरने की तू फ़िक्र ना कर

खुदा भी तेरे संग दौड़ पड़ा

है हिम्मत तो तू दांव लगा

है हिम्मत तो तू दांव लगा

पत्थर पर चट्टानों पर

रगड़ रगड़ अपना नाम बना

चीख उठे दरिया भी

ऐसा अपना नाम बना

ऐसा अपना नाम बना।।

Naivety

And she said,

“Karma is a bitch!

Wait till it comes to bite you back in your arse”

And I realised,

It was her

Who caused all the mayhem

Who burnt all bridges

Abused my emotions

Manipulated me

So much so

That I feared

That her anger shouldn’t come forth

God forbid!

It was another hell
And today,

Today she claims,

Karma will get to me!!

How naiive can one be?

How naiive?

नया वक़्त

एक नई कहानी है

जो ज़ेहन क्के एक कोने में

अंगड़ाइयां ले रही है

छुप छुप के आंखों के आगे आती है

कुछ चेहरे उभरते हैं

मैं ज़ोर देकर कुछ समझने की कोशिश करता हूं

तो घुल जाते हैं

मेरी तन्हाइयों में

अजीब वक़्त है

अभी कल ही एक नया किस्सा हुआ

बहन ने दोस्त के हाथ

मां के हाथ का बना

आम का अचार भेजा

मुझे लगा जैसे मेरी मां फिर जिंदा हो चुकी है

कभी किसी औरत में

तो किसी दोस्त में

उसका रूप स्वरूप देखता रहता हूं

शायद इसी तरह से ध्यान रखती है

अब वो मेरा

अभी तक अचार चखना बाकी है वैसे

पर मां के हाथ का है तो

बेहतरीन ही होगा

शक की कोई गुंजाइश ही नहीं

वाह रे वक़्त

कैसी अठखेलियां सी करता है

पल में तोला

पल में माशा

कभी अपार सुख

कभी अपार दुख

पांच दिवसीय टेस्ट मैच चल रहा है

शांति का मेरी

वो भी दीठ हो चुकी है

खेल रही है

दिन बा दिन

वक़्त बेवक्त

निडर बेखौफ

अजीब वक़्त है।।